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महक - लेखनी प्रतियोगिता -16-Jun-2022

मैं बगीचे का एक ऐसा प्यारा फूल हूँ
जो काँटों संग रहकर भी महकता है।
अपनी खुशबू से दिलों को महकाकर
प्रेमियों के प्रेम का प्रतीक बन जाता है।

मैं एक ऐसा अनोखा मनमोहक फूल हूँ
जो कीचड़ में खिलकर भी मुस्कुराता है
महक न सही, अपनी कठिन तपस्या से
लक्ष्मी माँ का आसन बन मान पाता है।

मैं ऐसी खिलखिलाती महकती हवा हूँ
संग अपने खुशियों का संसार लाती हूँ
अपनी महक और शीतलता फैलाकर
जग में परोपकार भाव लाना चाहती हूँ।

मैं वह रंग-बिरंगी खुशहाल तितली हूँ
बच्चों-बड़ों सबके मन को हर्षाती हूँ
हर एक फूल को मानती हूँ मैं अपना
अपनेपन की महक को बिखराती हूँ।

मैं वह चहकती फुदकती चिड़िया हूँ
जो ची-चीं कर मधुर गीत सुनाती हूँ
अमीर-गरीब का भेद ना मैं जानती
मीठी बोली की महक संग लाती हूँ।

मैं एक ऐसी जलपरी सी मछली हूँ
बिन पानी एक पल न रह पाती हूँ
निःस्वार्थ प्रेम की महक है दिल में
बदले में जल से कुछ न चाहती हूँ।

मैं एक ऐसा लहराता हुआ पौधा हूँ
हर किसी को छाया देना चाहता हूँ
धूप में तपकर भी सौहार्द की महक
जन-जन तक मैं पहुँचाना चाहता हूँ।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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12 Comments

Pallavi

18-Jun-2022 09:58 PM

Amazing

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Punam verma

17-Jun-2022 06:47 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

17-Jun-2022 03:46 PM

बेहतरीन रचना

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